Parenting (परवरिश - देखभाल औऱ पालन पोषण)

क्या है परवरिश? परवरिश यानी कि देखभाल और पालन-पोषण। ये सवाल एक साथ बहुत ही सरल और कठिन है, क्योंकि इसका कोई नियम या कानून नहीं है। हर माँ अपने बच्चे की परवरिश में कोई कमी नहीं रखना चाहेगी। माँ, वो है जो बच्चे के दुनिया में आने से पहले ही यह सोचना शुरू कर देती है कि वह अपनी संतान की परवरिश कैसे करेगी! यही मैंने भी किया। हर पल, हर वक़्त दिमाग में बस यही सब चलता रहता था। 

कभी-कभी तो लगता था कि मैं अपने बच्चे की देखभाल कर भी पाउंगी या नहीं। पर जैसे ही मेरी बिटिया आयी मानो लगा कि सबकुछ मिल गया हो, मेरी ख़ुशी का कोई ठिकाना ही न था। मैं और शेषांक यानी मेरे पति दोनों के लिए हमारी बेटी खुशियाँ ले आई।

शुरुआत में दिक्कतें आईं पर धीरे-धीरे मैंने दिक्कतों की वजहों को समझा और फिर धीरे-धीरे सब ठीक होता चला गया। बिटिया की मालिश, उसका दूध, उसके सोने का समय, उसकी ज़रूरतें, लगभग हर चीज़ का ध्यान रखा मैंने! 

क्योंकि बिटिया के लिए हर एक मौसम नया है, जिसमें  उसको किसी-न-किसी किस्म की परेशानी हो जाया करती है! अब मुझे मालूम है के उसका इलाज़ कैसे करना है!

मेरी बिटिया अभी बस 9 महीने की है, इसलिए कुछ-न-कुछ लगा ही रहता है इसलिए सोचती हूँ कि उसकी परवरिश में कहीं कोई कमी ना रह जाए। 

मैंने अपनी बहनों के बच्चों यानी मेरे भांजे, भांजी को बढ़ते हुए देखा है। देखा कि किस तरह से बच्चों की देखभाल की जाती है। 
लेकिन, बिटिया के आने के बाद एहसास हुआ कि हर बच्चा एक दूसरे से अलग होता है, उसका व्यवहार, उसके सोचने का नज़रिया, सब एक-दूसरे से एकदम भिन्न!

हमें बस अपने बच्चे के व्यवहार के अनुसार ही काम करना चाहिए ताकि बच्चा आपको और आप अपने बच्चे को समझ सके।

परवरिश कभी भी सोच के नहीं की जा सकती, बस समय के साथ हो जाती है लेकिन हाँ, परवरिश अच्छी या बुरी ज़रूर हो सकती है, जिसके बारे में मैं फिर कभी बात करूँगी ।

हमें हर दिन कुछ नया करना पड़ता है अपने बच्चे को कुछ नया सिखाने के लिए! 
परवरिश एक कभी न ख़त्म होने वाली प्रक्रिया है जो हर दिन चलती है।

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