Maa (माँ)

आज मैं एक हाउसवाइफ और एक माँ की भूमिका निभा रही हूँ जिसके लिए शायद मैंने कभी सोचा नहीं था पर हाँ मैं तैयार थी । अभी तक मैं एक नौकरी में थी । 

मेरी माँ को मैंने हमेशा से ही एक हाउसवाइफ की भूमिका में ही देखा है जहाँ वो घर का भार संभालतीं और पापा बाहर का। यही धारणा चली आयी है हमेशा से। 

खैर वक़्त बीता और वर्तमान में हर कोई बिजी है और सबसे बिजी रहने वालों में एक नाम हाउसवाइफ का भी है। आज हर काम मिल के किया जाने लगा है , चाहे वो घर का हो या बाहर का, महिला और पुरुष दोनों मिल के करते हैं। 

हाउसवाइफ की भूमिका से ज्यादा मैं माँ की भूमिका निभा रही थी।  बेटी के लिए क्या बनाना है, वो क्या खायेगी, उसकी मालिश वगैरह वगैरह। सारा काम बच्चे के हिसाब से होने लगता है अब चाहे वो घर का काम हो या फिर बाहर का। अलार्म की भी अब कोई जरूरत नहीं पड़ती क्योंकि बच्चा ही अलार्म का काम करने लगता है तब जाके दिनों की असली गिनती शुरू होती है। और तो और भला कोई काम आपके हिसाब से और समय पर हो जाए । खाना, नहाना, बाज़ार जाना सब कुछ मुश्किल हो जाता है। बस कुछ काम ही जो निबटाने होते है जैसे कि नहाना, खाना बनाना और खाना। 

जहाँ मैं पहले संडे का इंतेज़ार किया करती थी अब तो बस संडे आता है और चला जाता है । समय कैसे बीत जाता है बेटी के साथ पता ही नही चलता!

अब लगता है कि माँ बनना कोई खेल नहीं, अब समझ आता है अपनी माँ के संघर्ष का समय कैसा रहा होगा! जितना मुश्किल माँ बनना है उससे कहीं ज्यादा उसकी ज़िम्मेदारी को निभाना है। 

पर मैं कोशिश करती रहूंगी एक अच्छी माँ बनने की, ज़िम्मेदारी उठाने की।

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