Pranavya (प्रणव्या)

एक समय था जब सब कुछ किया धरा मिल जाता था बस करना होता था तो अपना काम। मम्मी जो थी साथ । स्कूल, होमवर्क, खेलने में ही दिन निकलता था। फिर आया कॉलेज का समय, अपनी साइकिल से रोज़ कॉलेज जाया करती थी। ऐसे ही समय बीता।

फिर आया जॉब टाइम। मैंने अपने कॉलेज के बाद ही जॉब शुरू कर दी थी क्योंकि मुझे अपने घर की जिम्मेदारी जो उठानी थी । दीदी की शादी भी पक्की हो गयी थी, अब तक तो उन्होंने ही सारी जिम्मेदारी उठाई थी ।

समय बीता फिर समय आया मेरी शादी का। शादी के 6 महीने बाद मैंने दोबारा जॉब शुरू की। वही रोज़ का सुबह उठना, खाना बनाना, टिफिन तैयार करना हुआ करता था। हफ्ते के 6 दिन काम करने के बाद संडे का इंतज़ार रहता था कि एक दिन आराम करूँगी। संडे का समय होता था अपने हिसाब से रहना का, जैसा मन हो वैसा खाना, देर तक सोना या बाहर जाना। 

यही सिलसिला चलता रहा, फिर जिंदगी में एक खूबसूरत-सा समय आया जब मैं 'माँ' बनी। माँ बनने का एहसास ही कुछ अलग-सा होता है , अचानक से सब कुछ बदल जाता है।

आपकी जिंदगी सिर्फ अपने बच्चे के इर्द-गिर्द ही घूमती रहती है । उसका दूध, उसका खाना, उसकी देखभाल बस यही सब चलता रहता है। 

लेकिन इतने बिज़ी होने पर भी सब कुछ कितना सुंदर ....!

Comments